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Wednesday, December 8, 2010

जरूर पढ़‍िए, प्रोफेसर से तमाशगीर कैसे बने डॉ प्रणय रॉय


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[8 Dec 2010 | 8 Comments | ]
जरूर पढ़‍िए, प्रोफेसर से तमाशगीर कैसे बने डॉ प्रणय रॉय
शहनाई के शहर में खून से भीगी कबीर की चादर

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रामाज्ञा राय शशिधर ♦ कोहरे से लिपटी पीली रोशनी के खंभे के नीचे एक विदेशी घायल जोड़े गले से लिपट कर बिलखते हुए एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे मानो उन्हें सचमुच पुनर्जन्म मिला हो।

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डेस्‍क ♦ यह लेख किशन पटनायक की एक किताब में संग्रहित है। यह किताब गूगल की बुकलिस्‍ट में है। वहां इस किताब के कई अध्‍याय मौजूद हैं, लेकिन प्रोफेसर से तमाशगीर वाला अध्‍याय गायब है।
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सिनेमा »

[8 Dec 2010 | 2 Comments | ]
अवाम का सिनेमा : सिलसिला जो चल पड़ा

शाह आलम ♦ अयोध्या फिल्म महोत्सव अपने चौथे संस्करण की दहलीज पर है। 2006 से शुरू हुआ यह सिलसिला दरअसल अपने शहर की पहचान को बदलने की जद्दोजहद का परिणाम था। उस पहचान के खिलाफ जो फासीवादी सियासत ने गढ़ी थी और जिसके चलते लोग गुजरते वक्त को इससे गिनते थे कि कब यहां नरबलियां हुईं, कब हमारे आशियाने जलाये गये, कब घंटों की आवाज सायरनों में तब्दील हो गयी और रंग-रोगन वाली हमारी सौहार्द की संस्कृति के सब रंग बेरंग हो गये। लेकिन इस सिलसिले की शुरुआत ने धीरे-धीरे ही सही, शहर के स्मृति पटल पर अमिट हो गया है, आज हम कह सकते हैं कि हमने कब से 'प्रतिरोध की संस्कृति और अपनी साझी विरासत' का जश्न मनाने के लिए फिल्म महोत्सव शुरू किया था।

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[8 Dec 2010 | Comments Off | ]

नज़रिया »

[6 Dec 2010 | 14 Comments | ]
इस धारावाहिक के प्रायोजकों के उत्‍पादों का बहिष्‍कार करें

डेस्‍क ♦ इमेजिन टीवी चैनल पर हाल में (29 Nov 2009 ) शुरू हुए धारावाहिक आरक्षण : अरमानों का बलिदान की अब तक 7 से ज्‍यादा कड़ियां आ चुकी हैं, जिन्हें देखने के बाद साफ हुआ कि ये धारावाहिक जिस प्रकार से ये प्रचारित कर रहा था कि ये आरक्षण के मुद्दे पर बेहतर समझ बनाने की कोशिश है, तो ये दावा सरासर गलत है। ये धारावाहिक सीधे-सीधे आरक्षण को सामाजिक उत्थान के कार्यक्रम के बजाय एक सामाजिक विडंबना के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है। इस धारावाहिक के अब तक के प्रसारण के आधार पर यही कहा जा सकता है कि ये सामाजिक न्याय के मुद्दे पर भ्रम फैलानेवाला धारावाहिक है, जिसमें भारतीय संविधान के न केवल प्रावधानों बल्कि मूल्यों को भी ब्राह्मणवादी कुतर्कों से तार-तार किया जा रहा है।

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[6 Dec 2010 | One Comment | ]
ये तय है कि अब नहीं चलेगी हिंदुत्‍व की दुकान

मार्क टुली ♦ 6 दिसंबर 1992 के बाद ही मार्च, 1993 में मुंबई में बम धमाके हुए, जिसमें 200 से भी ज्यादा लोग मारे गये और करीब एक हजार लोग घायल हुए थे। फिर गोधरा कांड हुआ, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस में पहले आग लगायी गयी, जिसमें अयोध्या से लौट रहे करीब 50 हिंदू मारे गये और उसके बाद भड़की हिंसा में भी 3,000 लोग मार दिये गये। इनमें अधिकांश मुस्लिम लोग थे। ज्यादातर हिंदू मानते हैं कि विवादित ढांचा भगवान राम की जन्मभूमि है। दूसरी ओर मुसलमानों का मानना है कि यह उनकी जमीन है, क्योंकि यहां 1528 से बाबरी मस्जिद है। देश में बीते 20 वर्षों के दौरान धार्मिक कट्टरता बढ़ी है। हिंदुत्व राष्ट्रवाद के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरता भी बढ़ी है।

uncategorizedस्‍मृति »

[6 Dec 2010 | 7 Comments | ]
देश बंटे, लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर नहीं, वे सबके थे

विश्‍वजीत सेन ♦ रवींद्रनाथ से पहले भी बंगाल समाज को सुधारने की, उसे पिछड़ापन से मुक्ति दिलाने की कोशिशें शुरू हुईं। लेकिन समाज सुधारकों का, संस्‍कृति पुरुषों का बुरा हाल हुआ। सतीदाह प्रथा को रद्द करवाने में राजा राममोहन राय ने अग्रणी भूमिका निभायी। कोलकाता के ब्राह्मण संबे समय तक उनके घर के सामने मलमूत्र से भरे भाड़ फेंकते रहे। चूंकि उन्होंने विधवाओं की शादी करवाने की हिम्मत दिखायी थी, इसलिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर को कोलकाता से खदेड़ करमाटांड़ भेज दिया। करमाटांड़ की वादियों में संथालों के बीच आखिरकार उन्हें सुकून मिला। रवींद्रनाथ के पूर्वजों की स्थिति भी यही होती, चूंकि वे धनी, साधन संपन्न और आत्मनिर्भर थे, इसलिए इस स्थिति में जाने से बच गये।

सिनेमा »

[5 Dec 2010 | 14 Comments | ]
क्‍या प्‍यार में हम एक छोटा सा ब्रेक ले सकते हैं?

सोनाली सिंह ♦ आलिया, जिसे पिता का प्यार नहीं मिला पर दूसरी तमाम कमियों को गुलाटी के प्यार ने भर दिया। जो 20 साल की उम्र में अपनी verginity खो देने का दावा करती है तो क्या बुरा करती है। दूसरी तरफ गुलाटी की बहन अपनी शादी और शादी के बाद होने वाले बच्चों के सपनों में खोयी है। बात सिर्फ इतनी है कि जिंदगी भरपूर जीयो अपने अंदाज से। जो करना चाहते हो करो बस रिग्रेट मत करो। खैर हमारी आलिया तो इतनी crystal clear है कि रिग्रेट करने का कोई चांस ही नहीं.. एक जिंदगी में, एक दिन में आप तमाम तरह की बातें सोचते हैं। उनपर आप अमल करते हैं। भले आपका पसंदीदा रंग सफेद है, अगर हरे रंग की ड्रेस पर आपका दिल आ जाता है, उसे खरीद लेते हैं। पहन कर इतराते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आप कनफ्यूज्‍ड हैं।

सिनेमा »

[4 Dec 2010 | No Comment | ]
जमाने के बाद दो भारतीय फिल्‍मों को मिला पुरस्‍कार

अजित राय ♦ भारत के अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में 10 साल बाद किसी भारतीय फिल्‍म को पुरस्‍कार मिला है। इससे पहले वर्ष 2000 में जयराज की फिल्‍म 'करुणम' को पुरस्‍कृत किया गया था। सर्वश्रेष्‍ठ निर्देशक का पुरस्‍कार डेनमार्क की फिल्‍म 'इन ए बैटर वर्ल्‍ड' के लिए सुसैन बीयर को दिया गया है। सुसैन बीयर डेनमार्क की चर्चित महिला फिल्‍मकार हैं। उनकी इसी फिल्‍म को आने वाले 83वें ऑस्‍कर पुरस्‍कारों के लिए डेनमार्क से नामांकित किया गया है। इसी साल शुरू हुआ सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार तुर्की की फिल्‍म 'द क्रॉसिंग' में अविस्‍मरणीय अभिनय के लिए गुवेन किराक को दिया गया है। इस फिल्‍म के निर्देशक सेमिर डेमिरडेलेन हैं। सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेत्री का पुरस्‍कार पोलैंड की मैकडेलेना बोजरस्‍का को मिला है।

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[3 Dec 2010 | 2 Comments | ]
अशोक वाजपेयी बड़े आदमी हैं, चिट्ठियों का जवाब नहीं देते

महेंद्र राजा जैन ♦ अशोक वाजपेयी स्‍वयं कोई कम 'बड़े लोगों' में नहीं हैं। वे भले ही चिट्ठियों द्वारा कुछ करवा सकने की मुहिम की अपार विफलता से हताश नहीं होते हों… और जैसे ही कुछ सूझता है सार्वजन‍िक क्षेत्र का मामला, दन से किसी को चिट्ठी भेज देते हों, पर जहां तक 'चिट्ठियों का जवाब देने के मामले में बदनाम नहीं होने' की बात है, जान पड़ता है प्रूफ की अशुद्धि से ऐसा छप गया है। यह वाक्‍य 'चिट्ठियों का जवाब नहीं देने के लिए बदनाम हूं' होना चाहिए था। लगभग छह माह पूर्व रचनावलियों के संदर्भ में मैंने एक चिट्ठी अशोक वाजपेयी को ईमेल से भेजी थी। मैंने कुछ सुझाव भेजे थे। लेकिन आज तक अशोक वाजपेयी का जवाब नहीं आया।

सिनेमा »

[3 Dec 2010 | One Comment | ]
आंदोलन, दमन, जासूसी, फरेब की कुछ फिल्मों के बारे में

अजित राय ♦ एडम एक प्रतिष्ठित लेखक है और लगातार शासन की तानाशाही के खिलाफ आंदोलन का समर्थन करता है। कैमिला उसकी जासूसी करते हुए अंतत: उसके प्रेम में पड़ जाती है क्योंकि उसे लगता है कि एडम का पक्ष मनुष्यता का पक्ष है। इसके विपरीत उसका प्रेमी रोमन सिर्फ सरकार की एक नौकरी कर रहा है और सरकारी हिंसा और दमन को सही ठहराने पर तुला हुआ है। जब पहली बार कैमिला को इस रहस्य का पता चलता है, तो उसे सहसा विश्वास ही नहीं होता कि सरकारी दमन और हिंसा में शामिल खुफिया पुलिस का एक दुर्दांत अधिकारी किसी स्त्री से प्रेम कैसे कर सकता है। वह यह भी पाती है कि प्रोफेसर एडम के ज्ञान और पक्षधरता का आकर्षण उसे एक नयी तरह के प्रेम में डुबो देता है।

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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